हिन्दू मैरिज एक्ट 1956 (Hindu Marriage Act) के अंतर्गत विवाह विच्छेद कानून (Indian Divorce Act) वैवाहिक जीवन सुचारु रूप से न चलने के स्थिति में तलाक की सुविधा देता है | पर पति पत्नी में से कोई भी पक्ष विवाह की तिथि से एक वर्ष तक तलाक़ के लिए आवेदन नहीं कर सकता है |
कोई भी हिन्दू, हिन्दू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act) के तहत तलाक़ की याचिका दायर कर सकता है |
तलाक़ किन स्थितयो में मिल सकता है |
- इंडियन डाइवोर्स एक्ट (Indian Divorce Act) के तहत निम्न में से किसी भी कारण पाने पर तलाक़ लिया जा सकता है |
- पुरुष का किसी और महिला के साथ रिश्ता हो |
- शादी के बाद पति अपनी पत्नी को प्रताड़ित करता हो |
- तलाक़ की याचिता प्रस्तुत करने के दो वर्ष पहले से पति ने पत्नी का या फिर पत्नी ने पति का परित्याग कर दिया हो |
- दो वर्ष से पति मानसिक रूप से अस्वस्थ या भी फिर अपंग हो |
- 7 साल से ज्यादा पति पत्नी में कोई संपर्क न हो |
- पति ने पहली शादी कर राखी हो | इस स्थिति में पहली पत्नी का जीवति होना जरूरी है |
- शादी के बाद पति नहीं पत्नी का बलत्कार किया हो या फिर उसमे किसी प्रकार का क्रूरता के लक्षण हो |
- लड़की की शादी 18 से पहले हो गयी हो |
- पति को यौन सम्बंधित कोई बीमारी हो और वो तीन वर्षो से तीन न हो रही हो |
तलाक़ की याचिका में क्या होना चाहिए |
- तलाक़ लेने का बहुत ही मजबूत कारण |
- दोनों पक्षों के बीच बगैर छल कपट के वाद प्रस्तुत किया गया हो |
- वाद में पस्तुत किये गए कथन फरियादी या फिर सम्बंधित पक्ष द्वारा प्रस्तुत किये गए हो |
कहा दायर करे तलाक़ की याचिका |
प्रत्येक तलाक़ (Divorce) के प्रकरण को केवल उन्ही के जिला अदालत में दायर किया जा सकता है | जिनके क्षेत्र में :
- विवाह सम्पन हुआ हो |
- जहां आखिरी बार दम्पति ने वास किया हो |
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