आज हम बात करेंगे कि क्या विद्यार्थी भी उपभोक्ता (consumer) होते है | विद्यार्थी (student) को उपभोक्ता (consumer) की श्रेणी में रखा जा सकता है या नहीं रखा जा सकता है | आज हम बात करेंगे स्कूल में दाखिले से सम्बंधित चीजों पर | यह तो हम सभी लोग जानते है कि किसी अच्छे स्कूल में दाखिला लेना कितना मुश्किल होता है | यह कभी कभी विद्यार्थी और उनके अभिवावक के लिए काफी कष्टदायक होते है | सबसे ज्यादा दिक्कत तब आती है जब एक से ज्यादा जगह पर फीस देकर हमे सीट को आरक्षित (reserve) करना पड़ता है | ऐसे में स्टूडेंट (student) एक से ज्यादा जगह फीस देके अपनी सीट को आरक्षित करते है मगर एडमिशन (admission) उन्हें किसी एक ही कॉलेज (college) में लेना होता है | जब वो किसी एक कॉलेज में अपने प्रसंद के कोर्स में एडमिशन (admission) ले लेते है बाद में उन्हें दूसरे कॉलेजेस से अपनी फीस को वापस लेना होता है | तभी दिखाते होना शुरू हो जाती है | इंस्टिट्यूट (Institute) अपने नियम और शर्तो का हवाला देके फीस को वापस देने से मन कर देते है | तो अगर आपके साथ या आपके किसी जानने वाले के साथ ऐसा कुछ हुआ है तो आपको क्या करना चाहिए|
आपको हमेशा ये याद रखना चाहिए कि एक स्टूडेंट भी एक उपभोक्ता (consumer) होता है | ऐसे में अगर आपको ऐसी कोई शिकायत (Grievance) होती है तो आप कंस्यूमर कोर्ट (Consumer Court) का सहारा ले सकते है | उपभोक्ता संरक्ष्रण अधिनियम में संशोधन करके वस्तुओ के साथ सेवाओं को भी कंस्यूमर कोर्ट का विषय बना दिया गया था | इस संशोधन का 1993 में बहुत ही ज्यादा विरोध किया गया था पर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया था कि स्टूडेंट भी कंस्यूमर (consumer) होते है और एजुकेशनल इंस्टिट्यूट (Educational Institute) सेवाएं देने वाली एजेंसी है | सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों के बेंच में 2003 उस्मानिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी vs स्टेट ऑफ़ कर्नाटक के मामले में हम फैसले लिए थे जिसमे कहा गया था कि एजुकेशनल इंस्टिट्यूट पुरे सेशन की फीस एक साथ नहीं ले सकते | या फिर एक साल की फीस एक साथ ली जा सकती है |
दूसरा यह कि अगर स्टूडेंट इंस्टिट्यूट को छोड़ना चाहता है और उसके पास छोड़ने का उचित कारण है तो इंस्टिट्यूट को फीस के कुछ पैसे काट कर बाकी कि रकम स्टूडेंट को वापस करनी होंगी |
तीसरा यह कि स्टूडेंट का ओरिजिनल सर्टिफिकेट कोई भी इंस्टिट्यूट नहीं रोक सकता है | इसी के साथ भी युजीसी (UGC) कुछ अधिसूचनाए जारी किये थे और युजीसी (UGC) ने कहा था कि अगर स्डूडेंट कुछ कक्षाए
इंस्टिट्यूट या फिर कॉलेज से ले चूका है तो उसकी फीस से कुछ (1 हजार) रूपये काट कर बाकी के पैसे वापस करने होंगे |
इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण फैसले आये थे | जो दो जजों कि बेंच के थे इसलिए तीन जजों कि बैंच का फैसला आज भी वैद्य है | जिसके अनुसार एजुकेशनल इंस्टिट्यूट (Educational Institute) कंस्यूमर कोर्ट (consumer court) के सामने उतरदायी होता है |
2009 में के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले के अनुसार परीक्षा बोर्ड (Examination Board) कंस्यूमर कोर्ट कि परिधि में नहीं आता है यह कहा गया था| लेकिन एजुकेशनल इंस्टिट्यूट (Educational Institute) अगर स्टूडेंट को गलत इनफार्मेशन देता है यह उसे किसी तरह का झासा देता है या सेवा प्रदान करने में कमी करता है तो इस तरह के मामले के लिए वो कंस्यूमर कोर्ट (consumer court) के सामने उत्तरदायी होगा|
कोई भी स्टूडेंट किसी कॉलेज या इंस्टिट्यूट (college or institute) के खिलाफ किन बातो को लेके कंस्यूमर कोर्ट (consumer court) में जा सकता है |
1. स्कूल या कॉलेज कि व्यवस्था ठीक नहीं है |
2. पर्याप्त शिक्षक का ना होना |
3. सुविधाओं में कमी है |
4. कोर्स का समय पर शुरू नहीं किया जाना |
5. स्टडी मटेरियल का ना दिया जाना |
6. क्लास लेने के स्थान को बार बार बदल दिया जाना |
7. ओरिजिनल सर्टिफिकेट देने से इंकार करना |
8. संस्थान के बारे में गलत भ्रामक सूचना देना |
9. जॉब दिलाने का वादा करके उससे पूरा नहीं किया जाना |
10. कॉलेज छोड़ने पर फीस को वापस ना लौटना |
11. पुरे सत्र की फीस एक बार में एक साथ मांगना |
इस तरह की दिक्कते होने पर आप कंस्यूमर कोर्ट (consumer court) में जा सकते है और अपनी शिकायत (complain) को दर्ज करा सकते है | आप अपनी शिकायत ऑनलाइन उपभोक्ता फोरम (complaint online consumer forum) के जरिये भी कर सकते है जहां पर जल्द से जल्द आपकी शिकायत (complain) का समाधान होगा |