Friday, 26 October 2018

नाइंसाफी का जवाब देने के लिए वकालात की, केस लड़ा और जीता (Consumer Win Consumer Case Against NIIT At District Consumer Protection Forum - Jodhpur Consumer Case)

consumer forum India

जोधपुर (Jodhpur): उपभोक्ता संरक्ष्रण मंच (consumer protection forum) के अध्यक्ष अतुल कुमार चटर्जी सदस्य श्रीमती जुबेदा कादरी और राजाराम सराफ ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में  एनआईआईटी (NIIT) पर मानसिक के लिए पीड़ा के लिए तीन लाख रुपये, दावा राशि एक लाख 23 हज़ार मय 9 प्रतिशत ब्याज सहित एवं 11,000 रुपये प्रतिवाद व्यय एक माह में देने का आदेश दिया है | प्रतिवादी जितेश मालवीय ने एनआईआईटी अभय चैम्बर जालोरी गेट में सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग (software engineering) कोर्स में एडमिशन लिया था |


दाखिले के समय एनआईआईटी (NIIT) के निर्देशक  मुकेश बंसल ने परिवादी को बताया कि उनके यहाँ तीन साल का सॉफ्टवेयर इंजीनियर (software engineering) का कोर्स कराया जाता था | जिसमे दो साल की क्लासरूम ट्रेनिंग (classroom training) और 1 साल की प्रोफेशनल प्रैक्टिस देश या विदेश की बड़ी आईटी कंपनी (IT company) में करवाई जाती है | बंसल ने परिवादी को सॉफ्टवेयर इंजीनियर (software engineering) के कोर्स की फीस एक लाख इकतालीस हज़ार नौ सौ ग्यारह रुपये बताई थी | बंसल ने जितेश को बताया अगर वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर कोर्स (software engineering course) में एडमिशन लेगा तो उसे 18 हजार का स्कॉलरशिप देगा जिससे उसकी फीस 1 लाख 23 हज़ार 9 सौ 11 रुपये हो जाएगी |      


मालवीय ने बंसल की लुभावनी बातो के झांसे में आकर सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग कोर्स (software engineering course) में एडमिशन ले लिया | परिवादी का कहना था कि बंसल ने पुरे तीन साल की फीस एक साथ ले ली थी और जब प्रोफेशनल प्रैक्टिस (professional practice) का समय आया तो टालमटोल करने लगे | जब परिवादी ने बंसल से कई बार प्रोफेशनल प्रैक्टिस (professional practice) करवाने का निवेदन किया पर उसे प्रोफेशनल प्रैक्टिस (professional practice) का नहीं  करवाई गयी | तब मालवीय ने जिला उपभोक्ता संरक्षण मंच (district consumer protection forum) में परिवाद पेश किया एवं न्याय देने की अपील की | उसके साथ यही नाइंसाफी से जितेश निराश नहीं हुआ | उसने वकालात कर मामले की पैरवी खुद ने की |
       

एनआईआईटी (NIIT) के निर्देशक ने अपने बचाओ में अपने अधिवक्ता (advocate) के द्वारा उपभोक्ता फोरम (consumer forum) में तर्क दिया कि उसके द्वारा परिवादी स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, आईसीआईसीआई  बैंक, और डिफेन्स इलेक्ट्रॉनिक्स एवं एडुकॉम्प कंपनी में नौकरी प्रदान की पर पर उसने जॉइन नहीं किया | इसलिए परिवादी की मामले को खारिज किया जाये | एनआईआईटी (NIIT) निर्देशक के अधिवक्ता ने जिला उपभोक्ता प्रोटेक्शन फोरम (district consumer protection forum) में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) के निर्णय भी पेश किये | परिवादी जितेश मालवीय द्वारा भी जिला उपभोक्ता संरक्षण फोरम (district consumer protection forum) में सुप्रीम कोर्ट (court) के निर्णय को पेश किया | दोनों पक्षों को सुनने के बाद मंच के अध्यक्ष अतुल कुमार चटर्जी सदस्य श्रीमती जुबेदा कादरी और राजाराम सराफ ने अपने फैसले में एनआईआईटी (NIIT) पर 3 लाख रुपये की राशि मानसिक क्षति, 1 लाख 23 हज़ार रुपये मय 9 प्रतिशत ब्याज सहित एवं 11,00 रुपये परिवाद व्यय एक माह में देने का आदेश दिया |


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Wednesday, 24 October 2018

घरेलू हिंसा नियम (Domestic Violence Act - Women Protection Act)

घरेलू हिंसा (Domestic Violence)

शारीरिक दुर्व्यवहार अर्थात शारीरिक पीड़ा (Physical Anguish), अपहानि या जीवन या अंग या स्वास्थ्य को खतरा या लैगिंग दुर्व्यवहार (sexual abuse) अर्थात महिला की गरिमा का उल्लंघन, अपमान या तिरस्कार करना या अतिक्रमण करना या मौखिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार (oral and emaotional abuse) अर्थात अपमान, उपहास, गाली देना या आर्थिक दुर्व्यवहार अर्थात आर्थिक या वित्तीय संसाधनों, जिसकी वह हकदार है, से वंचित करना,मानसिक रूप से परेशान करना ये सभी घरेलू हिंसा (Domestic Violence) कहलाते हैं।

इस क़ानून (law) के तहत घरेलू हिंसा (Domestic Violence) के दायरे में अनेक प्रकार की हिंसा (violence) और दुर्व्यवहार आते हैं। किसी भी घरेलू सम्बंध या नातेदारी में किसी प्रकार का व्यवहार, आचरण या बर्ताव जिससे आपके स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, या किसी अंग को कोई क्षति पहुँचती है, या  मानसिक या शारीरिक हानि होती है, घरेलू हिंसा (Domestic Violence) है।


इसके अलावा घरेलू सम्बन्धों या नातेदारी में, किसी भी प्रकार का


  • शारीरिक दुरुपयोग (जैसे मार-पीट करना, थप्पड़ मारना, दाँत काटना, ठोकर मारना, लात मारना इत्यादि),
  • लैंगिक शोषण (Sexual abuse) (जैसे बलात्कार अथवा बलपूर्वक बनाए गए शारीरिक सम्बंध, अश्लील साहित्य या सामग्री देखने के लिए मजबूर करना, अपमानित करने के दृष्टिकोण से किया गया लैंगिक व्यवहार, और बालकों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार),
  • मौखिक और भावनात्मक हिंसा ( जैसे अपमानित करना, गालियाँ देना, चरित्र और आचरण पर आरोप लगाना, लड़का न होने पर प्रताड़ित करना, दहेज के नाम पर प्रताड़ित करना, नौकरी न करने या छोड़ने के लिए मजबूर करना, आपको अपने मन से विवाह न करने देना या किसी व्यक्ति विशेष से विवाह के लिए मजबूर करना, आत्महत्या की धमकी देना इत्यादि),
  • आर्थिक हिंसा ( जैसे आपको या आपके बच्चे को अपनी देखभाल के लिए धन और संसाधन न देना, आपको अपना |
  • रोज़गार न करने देना, या उसमें रुकावट डालना, आपकी आय, वेतन इत्यादि आपसे ले लेना, घर से बाहर निकाल देना इत्यादि), भी घरेलू हिंसा (Domestic Violence) है।


जानिए क्या है घरेलू हिंसा के नियम (Rules For Domestic Violence)
  • इस एक्ट के तहत महिला मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की court में complaint कर सकती है |  

  • शिकायत पर सुनवाई के दौरान court protection officer से रिपोर्ट मांगता है |
  • महिला जहां रहती है या जहां उसके साथ घरेलू  हिंसा हुई है या फिर जहां प्रतिवादी रहते है, वहां complain की जा सकती है | 

  • प्रोटेक्शन ऑफिसर (Protection Officer) घटना की रिपोर्ट अदालत (court) के सामने पेश करता है और उस रिपोर्ट को देखने के बाद अदालत  (court) प्रतिवादी को सामान जारी करता है | 
  • प्रतिवादी का पक्ष सुनने के बाद अदालत अपना आदेश पारित करती है | 
  • इस दौरान अदालत महिला को उसी घर में रहने देने, खर्च देने या फिर प्रोटेक्शन (Protection) देने का अधिकार दे सकती है | 
  • अगर अदालत महिला के फेवर में आदेश पारित करती है और प्रतिवादी उस आदेश का पालन नहीं करता है तो डीवी  एक्ट-31 के तहत प्रतिवादी पर केस बनता है | 
  • इस एक्ट के तहत चलाये गए मुक़दमे में दोषी पाए जाने पर एक साल तक कैद की सजा का प्रावधान है | साथ ही साथ, 20 हजार रुपये तक के जुर्माना का भी प्रावधान है |
  • यह केस गैरजमानती और कॉग्निजिबल होता है  


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Tuesday, 23 October 2018

10 बातें हर उपभोक्ता को पता होना चाहिए जानिए क्या है वो बातें (10 Things Every Consumer Must Need To Know - Voxya Complaint Forum India)

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आज कल धोखाधड़ी की दुनिया में खरीदारी करते समय कई चीजों ध्यान रखना जरूरी है नहीं तो आगे चल के समस्याओ का सामना कर पड़ सकता है | जानते है वो कौन सी 10 महत्त्वपूर्ण बाते है जो प्रत्येक ग्राहक को shopping करने से पहले जान लेनी चाहिए |


1. व्यावसायिक लाइसेंस स्थिति और शिकायत इतिहास की जांच करें :

किसी भी उत्पाद या वस्तु या सेवाओं को लेने से पहले कंपनी की वास्तविक स्थिति को जान लेना जरूरी होता है | आप कंपनी के बिज़नेस लाइसेंस और दूसरे उपभोक्ताओं के द्वारा कंपनी के खिलाफ कंपनी की शिकयतों के विषय में पूरी तरह से जान लेना जरूरी होता है | अगर अपनी कोई प्रोडक्ट खरीदने के मन बनाया है और आप उस कंपनी के खिलाफ किसी भी प्रकार की शिकायत (complain) है जानना चाहते है तो आप Voxya consumer complaint portal पर चेक कर सकते है |  


2. धनवापसी की नीतियों और क्रेडिट कार्ड सीमाओं को जरूर देखें, जो कंपनी ने अपनी वेबसाइट लिखा होता है :

जी अगर आपसी भी प्रकार का कोई भी उत्पाद या Product खरीदने जा रहे है तो आपको पहले यह जान लेना जरूरी है कि किसी भी प्रकार कि गड़बड़ी या कमी निकलने पर क्या पैसे वापस मिल जायेंगे या नहीं | यदि प्रोडक्ट लेने के कुछ ही समय बाद आपका किसी कारण से बदलता है तो क्या कंपनी पैसे वापस करेगी या नहीं | आपको यह भी जानना जरूरी है कि उस Shop में या फिर company में क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करने की अधिकतम सीमाएं क्या है | इसके लिए कंपनी की पॉलिसी को ध्यान से जरूर पढ़े|  


3. कीमत को देखे जो हर कंपनी ने अपने Product और सर्विसेज के लिए लिखा होता है :

हर कंपनी के अपने अलग पैरामीटर होते है जिसके हिसाब से वो अपने उत्पाद या फिर सेवाओं की कीमत को तय करते है | लेकिन आप ये जान लेना जरूरी है की वास्तविक में उसी चीज की बाज़ार में क्या कीमत है | कभी कंपनी या दूकानदार जायदा कमाने चक्कर में ग्राहक को ज्यादा कीमत बता के प्रोडक्ट और सेवाओं को बेच देते है | बहुत सी फ्रॉड कंपनी और दुकानदार ऊपर से द्वारा price tag लगा के प्रोडक्ट्स को बेचते है जिसका पता consumer को बाद में चलता है |  


4. रसीद जरूर ले और संम्भल के रखे :

अगर आप कोई वस्तु या प्रोडक्ट या फिर सेवाएँ किसी दूकान या कंपनी से लेते तो रसीद लेना न भूले | क्योकि रसीद या कैश मेमो ही मात्र एक सबूत होता है आपके पास से जरिये आप ये दवा कर सकते है कि आपने ये प्रोडक्ट और सेवाएं अपनी उसी कंपनी से खरीदी है | यह किसी भी प्रकार की प्रकार की consumer complaint में बहुत ही काम आती है | 


5. झूठे विज्ञापन और घोटाले से सावधान रहे :

बहुत से कंपनियां बाज़ार में आती है और लुभावने वादे करती है और झूठे विज्ञापन के चक्क्र लोग अपने पैसे को लगाना शुरू करते है फिर बाद में ठगे हुए से महसूस करते है | इसलिए किसी भी विज्ञापन को देखने के बाद उसकी सच्चाई को जरूर जाँच ले जिस आप होने वाले फ्रॉड और घोटाले बच पाएंगे |


6. गुणवत्ता मानकों, चिन्हो और वजन को जरूर देखे :

किसी भी प्रोडक्ट और उत्पाद को खरीदने से पहले उचित गुणवत्ता को जरूर चेक करे और सरकार द्वारा निर्धारित गुणवत्ता चिन्हो को जरूर देखे जैसे की ISI मार्क, एगमार्क आदि | यह आपकी सेहत को नुकसान से बचने में मदद करेगा और आप यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आप जो भी खरीद रहे उसकी माप सही है यही अगर नहीं तो उसकी complaint आप consumer forum या फिर consumer court में भी कर सकते है | 

  
7. अपनी पहचान की रक्षा करे :

आप अगर कोई सामान ऑनलाइन या ऑफलाइन खरीदते है तो कभी कभी आपकी अपनी कुछ इनफार्मेशन कंपनी या दुकानदार को बतानी पड़ती है | जिसके बाद से आपको बेवजह या फिर क्रेडिट कार्ड बेचने वालो कि या किसी अन्य तरह से फ़ोन आने लगते है जिसके उपभोक्ताओं को परेशानी होती है | कभी कभी आपकी पहचान ID के गलत उपयोग भी हो सकते है इसलिए आपको ये भी सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि आपकी  पहचान ID या कॉन्फिडेंटिअल जानकारी किसी प्रकार से गलत इस्तेमाल न हो |


8. जाने परखे, बातचीत करे और सावधानी से खरीदे :

जी हां अगर आप कोई भी प्रोडक्ट या फिर सेवाएं लेने जा रहे है तो आप अपने प्रोडक्ट और उस दूकान और कंपनी के विषय में अच्छे से जाँच परख ले और बहुत ही सावधानी से अपने खरीदारी करे | 


9. अपने ऋण से निपटने और अपने वित्त का नियंत्रण ले लो :

अगर आप किसी प्रकार का उत्पाद को फाइनेंस  करवाते है तो उससे सम्बंधित सभी प्रकार के दस्तवेज को जानकारी को अपने पास संभल के रखे | और उससे समबन्ति सभी बिल या किस्तों के विषय में जानकारी आपके पास होनी चाहिए |


10. शिकायत दर्ज करे (File complaint) अगर कंपनी समस्या नहीं दूर कर रही है :

अधिकतर सभी डिपार्टमेंट का अपना अलग consumer affairs department होता है जहां पर आप अपनी शिकायत को दर्ज कर सकते है | आप अपनी शिकायत को online consumer complaint portal के माध्यम से भी कर सकते है और consumer court का दरवाजा खटखटा के अपनी उपभोक्ता शिकायत का निपटारा कर सकते है |




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Monday, 22 October 2018

जानिए उपभोक्ताओं के लिए क्या उपाय उपलब्ध हैं? (What are the remedies available to consumers?)

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आज हम इस पोस्ट में उपभोक्ताओं (consumers) को जो शिकायते (complaints) होती है या फिर जो दिक्कते आती है उनके क्या उपाए है उसके विषय में हम आपको बताने जा रहे है | 


दोषों को दूर करे  (To Remove Defects/ Deficiencies)

अगर आपको कोई भी चीज़ खरीदते है और आपको उसमे खराबी या फिर कमी निकलती है | तो कंपनी को उस खरभि को ठीक करने के लिए कहा जा सकता है | 


प्रोडक्ट को बदले (To Replace the Goods)

अगर कोई भी या फिर किसी भी प्रकार का मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट निकलता  है तो कंपनी को उस प्रोडक्ट को बदलने के लिए कहां जाता है | जैसे कि आप एक लैपटॉप खरीदते है और लैपटॉप (laptop) खोलते है उसकी स्क्रीन नहीं चलती है तब कंपनी को एक नया लैपटॉप देने को कहां जा सकता है | 


पैसे वापस ले  (To Return Price of the Goods)

अगर आपके साथ इस प्रक्र की स्थिति आती जिसमे आपका प्रोडक्ट बदला नहीं जा सकता है तो उस स्थिति में आप कंपनी से पैसे वापस ले सकते है | यह उस स्थिति में भी होता जिसमे उपभोक्ता को सिर्फ पैसे वापस चाहिए और प्रोडक्ट नहीं चाहिए होता है | 


मुआवजा की मांग  करे (To Provide Compensation) 

कुछ चीजों में उपभोक्ता को मानसिक रूप से हुई परेशानी  और तनाव के लिए, कंपनी को मुआवजा भी देना पद सकता है | जैसे कि आप अपनी यात्रा के लिए फ्लाइट बुक किया पर फ्लाइट यात्रा को शुरू करने में काफी देरी करता है और बाद फ्लाइट को कैंसिल करने कि खबर मिलती है तो इस केस में आप नुक्सान भरपाई के लिए आवाज उठा सकते है क्योकि इसमें आपको मानसिक पीड़ा और तनाव के लिए उचित मुआवजा आपको, कंपनी कि तरफ से मिल सकता है | 
     

अनुचित व्यापार को रोके (To Stop Unfair Trade Practices) 

अगर कोई दूकानदार किसी गलत तरीके से दूकान चला रहा है | जैसे कि अपने प्रोडक्ट के बारे में झूठ बोल रहा हो तब इस प्रकार की व्यापार प्रथाओं को बंद करने को कहां जा सकता है | 


खतरनाक उत्पाद को बेचने से रोके (To Withdraw Dangerous Goods From Sell)

अगर कोई कंपनी इसे प्रोडक्ट या फिर वास्तु को मार्किट में बेचती है जिससे किसी भी प्रकार का नुकसान हो सकता है जैसे उसके प्रोडक्ट में किसी प्रकार का रेडियो एक्टिव मटेरियल हो तब इस तरह की कंपनी को प्रोडक्ट बेचने से मन किया सकता है |


अगर आपको लगता है की आपके उपभोक्ता शिकायत (consumer complaint) की सुनवाई नहीं हो रही है तो अपनी शिकायत को अपने जिला उपभोक्ता अदलात या फिर ऑनलाइन कंस्यूमर कंप्लेंट पोर्टल (online consumer complaint portal) पर करके के जल्द से जल्द उपभोक्ता शिकायत का निवारण (redressal of consumer complaint) पा सकते है |

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Thursday, 18 October 2018

जानिए पति की सम्पति पर पत्नी का कितना अधिकार है | (Wife Rights On Husband's Property)

consumer court
प्रत्येक महिला को अपने अधिकारों के विषय में जानना बहुत आवश्यक है | इस पोस्ट में जानिए कि पत्नी का पति कि सम्पति में कितना अधिकार है |

पति की सम्पति पर पत्नी का हक (wife's property rights in India)
  • शादी के बाद पति की सम्पति पर पत्नी का मालिकाना हक नहीं होता है | लेकिन पति की हैसियत और आय के हिसाब से पत्नी को गुजारा भत्ता दिया जाता है | 
  • महिला को ये अधिकार है की उसका भरण पोषण उसका पति करे और पति की आय और हैसियत के हिसाब से भरण पोषण करना चाहिए | 
  • वैवाहिक विवादों से सम्बंधित मामलो में कई कानूनी प्रावधान है | जिनके जरिये पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है | 
  • सीआरपीसी (CRPC), हिन्दू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act), हिन्दू एडॉप्शन (Hindu Adoption) और मेन्टेन्स एक्ट (Maintenance Act), और घरेलू  हिंसा कानून (domestic violence law) के द्वारा गुजारा भत्ता बंग सकती है | 
  • अगर पति नहीं पत्नी के नाम पर कोई वसीयत बनाई है तो उसके मरने के बाद उसकी पत्नी को उसका हक मिल सकता है | 
  • पति अपनी खुद की आय से अर्जित सम्पति की ही वसीयत कर सकता है | पैतृक सम्पति को अपनी पत्नी के नाम नहीं कर सकता है | 
  • अगर पति ने कोई वसीयत नहीं बनायीं हुई है और पति की मौत हो जाती है तो पत्नी को पति द्वारा अर्जित की गयी आय में ही हिस्सा मिल सकता है | पति की पैतृक सम्पति पर पत्नी किसी भी प्रकार का दवा नहीं कर सकती है |


उम्मीद है आपको हमारे पोस्ट से पत्नी से हक से सम्बंधित जानकारी मिली होंगी | हम ऐसी ही रोचक जानकारी लाते रहेंगे |

प्लीज हमारे ब्लॉग को पढ़ते रहे और Voxya ऑनलाइन कंस्यूमर फोरम (online consumer forum) पर उपभोक्ता शिकयतों (consumer complaints) को दर्ज करना न भूले |

वेस्या, उपभोक्ताओं की आवाज़ सिर्फ आपके लिए | 

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Tuesday, 16 October 2018

जानिए पावर ऑफ़ अटॉर्नी क्या है (Know What Is Power Of Attorney?)

पावर ऑफ़ अटॉर्नी क्या है (What is Power Of Attorney?)

पावर ऑफ़ अटॉर्नी (Power Of Attorney) एक ऐसा दस्तावेज है जिसके जरिये कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को अपनी सम्पति के बारे में निर्णय लेने का अधिकार देता है | दूसरे शब्दों में कहे, तो पावर ऑफ़ अटॉर्नी एक प्रकार का न्यायिक अधिकार पत्र होता है | जो प्रॉपर्टी के मालिकाना हुक वाले के बदले में किसी दूसरे व्यक्ति को कानूनी या व्यवसायिक निर्णय लेने के लिए अधिकृत करता है | ध्यान देने वाली बात या भी है कि प्रॉपर्टी के अलावा बैंक खाते, शेयरों, और म्यूच्यूअल फंड (mutual fund) आदि के लिए आप किसी को पावर ऑफ़ अटॉर्नी दे सकते है | 


पावर ऑफ़ अटॉर्नी दो प्रकार के होते है | (Two Types Of Power Of Attorney)
  • जनरल पावर ऑफ़ अटॉर्नी (General Power Of Attorney) के तहत अटॉर्नी के पास सभी तरह के फैसले लेने का अधिकार होता है |
  • स्पेशल पावर ऑफ़ अटॉर्नी (Special Power Of Attorney) के तहत अटॉर्नी को किसी खास काम के तहत अधिकृत किया जाता है| 


क्या सावधानी बरते (Caution Must Need To Know)

पावर ऑफ़ अटॉर्नी (Power of Attorney) देते समय आप अपना हक किसी दूसरे को दे रहे होते है | इसलिए कभी भी ऐसे व्यक्ति को न दे जिसपे आप विश्वास न हो | हमेशा विश्वासपात्र को ही पावर ऑफ़ अटॉर्नी देनी चाहिए | 

कैसे बनता है पावर ऑफ़ अटॉर्नी (How To Make Power Of Power Of Attorney?)

पावर ऑफ़ अटॉर्नी (Power Of Attorney) बनाने के कानून, देश के विभिन्न राज्यों में अलग अलग है | कही यह सब रजिस्टार के ऑफिस से बनता है | तो कही या नोटरी के पास से | 100 रुपये से लेके 1000 रुपये के नॉन जुडिशल स्टाम्प पेपर पर पावर ऑफ़ अटॉर्नी बनाया जाता है | पावर ऑफ़ अटॉर्नी में निष्पादित करने वाले व्यक्ति हस्ताक्षर, जिसके नाम से पावर ऑफ़ अटॉर्नी (Power Of Attorney) बन रहा है | के अलावा दो गवाहों के भी हस्ताक्षर होते है | 


समय सीमा (Deadline Of Power Of Attorney)

पावर ऑफ़ अटॉर्नी (Power Of Attorney) की समय सीमा एक साल की होती है | यदि एक साल के अंदर ही लगने लगे कि अटॉर्नी बेजावजह फ़ायद उठा है तो वकील से इस विषय में मदद ले सकते है | ऐसे में पुलिस और न्याययालय (court) में शिकायत (complaint) की जा सकती है और समय सीमा समाप्त होने से पहले ही पावर ऑफ़ अटॉर्नी को रद्द किया जा सकता है |
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Monday, 15 October 2018

जानिए कैसे मिलता है तलाक़ ( Divorce Procedure in Hindi)

कैसे मिलता है तलाक 

हिन्दू मैरिज एक्ट 1956 (Hindu Marriage Act) के अंतर्गत विवाह विच्छेद कानून (Indian Divorce Act) वैवाहिक जीवन सुचारु रूप से न चलने के स्थिति में तलाक की सुविधा देता है | पर पति पत्नी में से कोई भी पक्ष विवाह की तिथि से एक वर्ष तक तलाक़ के लिए आवेदन नहीं कर सकता है |   

कोई भी हिन्दू, हिन्दू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act) के तहत तलाक़ की याचिका दायर कर सकता है | 

तलाक़ किन स्थितयो में मिल सकता है |
  • इंडियन डाइवोर्स एक्ट (Indian Divorce Act) के तहत निम्न में से किसी भी कारण पाने पर तलाक़ लिया जा सकता है | 
  • पुरुष का किसी और महिला के साथ रिश्ता हो | 
  • शादी के बाद पति अपनी पत्नी को प्रताड़ित करता हो | 
  • तलाक़ की याचिता प्रस्तुत करने के दो वर्ष पहले से पति ने पत्नी का या फिर पत्नी ने पति का परित्याग कर दिया हो |
  • दो वर्ष से पति मानसिक रूप से अस्वस्थ या भी फिर अपंग हो | 
  • 7  साल से ज्यादा पति पत्नी में कोई संपर्क न हो |
  • पति ने पहली शादी कर राखी हो |  इस स्थिति में पहली पत्नी का जीवति होना जरूरी है |
  • शादी के बाद पति नहीं पत्नी का बलत्कार किया हो या फिर उसमे किसी प्रकार का क्रूरता के लक्षण हो |
  • लड़की की शादी 18 से पहले हो गयी हो |
  • पति को यौन सम्बंधित कोई बीमारी हो और वो तीन वर्षो से तीन न हो रही हो | 


तलाक़ की याचिका में क्या होना चाहिए | 
  • तलाक़ लेने का बहुत ही मजबूत कारण |
  • दोनों पक्षों के बीच बगैर छल कपट के वाद प्रस्तुत किया गया हो |
  • वाद में पस्तुत किये गए कथन फरियादी या फिर सम्बंधित पक्ष द्वारा प्रस्तुत किये गए हो | 


कहा दायर करे तलाक़ की याचिका | 

प्रत्येक तलाक़ (Divorce) के प्रकरण को केवल उन्ही के जिला अदालत में दायर किया जा सकता है | जिनके क्षेत्र में :
  • विवाह सम्पन हुआ हो |
  • जहां आखिरी बार दम्पति ने वास किया हो |




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Friday, 12 October 2018

जानिए क्या है दहेज़ निरोधक कानून (Dowry Prohibition Act 1961)

Dowry Prohibition Act

दहेज़ निरोधक कानून (Dowry Prohibition Law)

  • ससुराल में महिलाओ को सुरक्षित वातावरण मिले इसलिए कानून के पुख्ता प्रबंध है |
  • दहेज़ प्रतारण से बचने के लिए 1986 में आईपीसी की धारा 498-A का प्रावधान किया गया है |
  • इसे दहेज़ निरोधक कानून कहां गया है | 
  •  यदि किसी महिला को दहेज़ के लिए मानसिक, शारीरिक या अन्य किसी तरीके से प्रताड़ित किया जाता है तो महिला की शिकायत (complaint) इस धारा में केस दर्ज किया जा सकता है | 
  • यह गैरजमानती अपराध है |
  • दहेज़ के लिए ससुराल में प्रताड़ित करने वाले तमाम लोगो को आरोपी बनाया जा सकता है | 


जानिए क्या सजा मिलती है है इस कानून के अंतर्गत 
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  • इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम सात 7 तक की सजा का प्रावधान है |
  • अगर शादीशुदा महिला की मौत शादी के सात साल के अंदर संदिग्घ परिस्थितयो में है तो आईपीसी धारा 304-B के तहत केस दर्ज किया जाता है | 
  • दहेज़ निरोधक कानून की धारा-8 तहत दहेज़ देना और लेना सांग्ये अपराध है | 
  • दहेज़ की मांग करना धारा-4 के तहत जुर्म है | शादी से पहले लड़का दहेज़ की मांग करता है तो इस धारा में केस दर्ज किया जा सकता है | 
  • दहेज़ देने के मामले में धारा-3 के तहत मामला दर्ज हो सकता है और इस धारा में जुर्म साबित होने पर कम से कम 5 साल तक की सजा का प्रावधान है |    
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Wednesday, 10 October 2018

चेक बाउंस मामले में कानूनी कार्रवाई कैसे करें? (How To Take Legal Action in Cheque Bounce Case?)


नेगोशिएबल एक्ट (Negotiable Instruments Act, 1881) -

इस एक्ट के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति को चेक जारी करता है और वह चेक बैंक द्वारा अनादरित (bounce) कर दिया जाता है तो यह अपराध है | 

उदाहरण के लिए (For an example)

सुरेश ने किसी सौदे के भुगतान के एवज में रमेश को देश रुपये का चेक प्रदान किया और बैंक द्वारा उस चेक को सुरेश के खाते में अपर्याप्त राशि होने के कारण अनादरित कर दिया तो प्रक्रम्य लिखित अधिनियम 1881 (written statement of 181) की धारा 138 के तहत सुरेश पर वाद दायर किया जा सकता है |


नियम (Rule)

चेक अनादरित होने के बाद रमेश से चेक जारी करने वाले सुरेश से 15 दिनों में भुगतान के लिए आग्रह करेगा | इस आग्रह को वकील के द्वारा लीगल नोटिस रजिस्टर्ड डाक के द्वारा भेजना चाहिए |

अगर  15 दिन के अंदर सुरेश रुपये का भुगतान नहीं करता है, तब रमेश न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग के पास एक माह की अवधि में वाद दायर कर सकता है | 

इस अधिनियम के तहत चेक अनादरण का गुनाह दो वर्ष का कारावास एवं दुगुने जुर्माने से दण्डनीये बनाया गया है | 

अगर आपके साथ भी ऐसा हुआ है और किसी के द्वारा दिया गया चेक बाउंस हो रहा है तो आप पहले उस व्यक्ति या कंपनी से संपर्क करे | कोई जवाब न मिलने पर आप अपनी शिकयत को दर्ज क्र सकते है | अगर आप अपनी शिकयत ऑनलाइन (complaint online) करना चाहते है तो Voxya ऑनलाइन उपभोक्ता फोरम (online consumer forum) का चयन करना न बोले | 

VOXYA  
voice of consumers only for you!
   


Tuesday, 9 October 2018

जानिए महिला का सास ससुर की सम्पति पर कितना अधिकार है | (Know What Are the Rights of Women On IN-LAWS Property)

इस पोस्ट में में मैने महिलाओ का सास ससुर की सम्पति में क्या अधिकार होता है ये बताया है जानने के लिए जरूर पढ़े |


  • सास ससुर की सम्पति पर बहु का कोई अधिकार नहीं हो सकता है | 
  • बहु को सिर्फ उसी सम्पति पर अधिकार है, जो उसके पति की है या जिसमे पति का हिस्सा है |
  • सास-ससुर की सेल्फ एक्वायर्ड सम्पति पर पुत्र या पुत्रवधू  किसी प्रकार का दवा नहीं कर सकता है | 
  • पुत्र वधू  अपने सास ससुर की इच्छा के खिलाफ उसके घर में नहीं रह सकते है | 
  • अगर सास ससुर ने अपने पुत्र को सम्पति से बेदखल कर दिया हो तो पुत्र भी अपनी माता पिता की सेल्फ एक्वायर्ड सम्पति पर कोई दवा नहीं कर सकता है |  
  • घरेलु हिंसा पर पत्नी सिर्फ अपनी पति की सम्पति पर उसके इनकम के ऊपर भरण पोषण का दवा कर सकती है लेकिन वो सास ससुर की सेल्फ एक्वायर्ड सम्पति पर कोई दवा नहीं कर सकती है |
  • मकान, जमीन आदि अचल सम्पतियाँ जिस किसी के नाम पंजीकृत है, उसी के स्वामित्व में होती है | पिता की सम्पति पिता की है और माता की सम्पति माता की है |
  • जब तक माता पिता जीवित है, उनकी सम्पति पर किसी का कोई भी अधिकार नहीं होता है |
  • पुत्र को वयस्क अर्थात 18 वर्ष होने तक तथा पुत्री को उसके विवाहित होने तक मात्र भरण पोषण का अधिकार होता है | 
  • यदि माता पिता किसी के नाम वसीयत नहीं करते और अपनी सम्पति अपने ही आप छोड़ देते है, तो उस सम्पति पर उनके सभी उत्तराधिकारियों का सामान अधिकार होता है |  



Monday, 8 October 2018

कैसे हॉस्पिटल और डायग्नोस्टिक सेंटर के खिलाफ कानूनी करवाई कर सकते है |(How To Take Legal Action Against Hospital and Diagnostic Center?)

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आज हॉस्पिटल और डायग्नोस्टिक सेंटर (Hospital and Diagnostic Center) की चिकित्सा और जाँच में लापरवही के कारण कई उपभोक्ताओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, यहाँ तक कई हॉस्पिटल्स (hospitals) इलाज के नाम पर मनमानी लूट करते है | जिसके उन्होंने उपभोक्ता फोरम (consumer forum) और कंस्यूमर कोर्ट (consumer court) का दरवाजा खटकना पड़ता है | 
जानिए कब आप हॉस्पिटल और डायग्नोसिस सेंटर (Hospital and Diagnostic Center)के खिलाफ कारवाही कर सकते है |
  • अगर पेशेंट (Patient) को डॉक्टर ने गलत दवाई दे दी हो जिससे पेशेंट की तबियत खराब हो गयी हो |  
  • पेशेंट (Patient) को समय पर ट्रीटमेंट नहीं दिया गया हो जिससे पेशेंट की मौत हो गयी हो | 
  • गलत इंजेक्शन या टेबलेट या गलत इलाज की वजह से पेशेंट (Patient) की मौत हो गयी हो | 
  • गलत इलाज की वजह से पेशेंट (Patient) का कोई अंग ख़राब हो गया हो | 
  • डायग्नोस्टिक सेंटर (Diagnostic Center) की तरफ से पेशेंट की गलत रिपोर्ट दी गयी हो जिससे पेशेंट (Patient) का गलत उपचार हुआ हो | 
  • हॉस्पिटल (Hospital) के द्वारा पेशेंट से इलाज की ज्यादा फीस वसूल की  गयी हो |
  • डायग्नोस्टिक सेंटर (Diagnostic Center) की तरफ से जांच की जायद फीस वसूल की गयी हो | 
  • हॉस्पिटल (Hospital) की तरफ से जितनी फीस ली गयी हो और इलाज करने की उतनी रसीद नहीं दी गयी हो |
  • डायग्नोस्टिक सेंटर (Diagnostic Center) में जाँच के लिए जितनी फीस ली गयी हो उतने की रसीद आपको नहीं दी गयी हो | 


अगर आपने इस तरह की किसी भी प्रकार की दिक्कतों का सामना किया है या आपकी कोई भी उपभोक्ता शिकायत हॉस्पिटल या डायग्नोसिस सेंटर (consumer complaint against hospital and diagnostic center) के खिलाफ है तो आप अपनी शिकायत को Voxya ऑनलाइन कंस्यूमर फोरम (online consumer forum) पे जरूर करे | 
  

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Thursday, 4 October 2018

कैसे कंस्यूमर कोर्ट में जीत हासिल करे (How To Win Case in Consumer Court?)

कोई भी केस जितने के लिए लिखित बयान बहुत महत्वपूर्ण होता है | लिखित बयान (written statement) बहुत सोच समझ कर और वकील के सलाह लेकर दिया जाता है जिससे केस कोई जितने में कोई परेशानी नहीं आती है | 

1. कंस्यूमर कोर्ट (consumer court) में केस केस बिना वकील (Lawyer) के लड़ा जा सकता है पर आम आदमी को कानूनी भाषा की जानकारी नहीं होने की वजह से वो बयान आधे- अधूरे तरीके से ही दे पाते है | जिससे उनको केस जितने के बजाये उनको परेशानियों का सामना करना पड़ता है | अगर आपका केस मजबूत है पर अपने लिखीं बयान कानूनी भाषा (legal language) में सही से नहीं लिखा है तो आपके केस (case) को काफी लम्बा खींचा जाता है |जिसके करना सामने वाले पार्टी को आप परेशान करने का मौका मिल जाता है | 

2. अगर आपने कानूनी भाषा (legal languageमें सही लिखी है और सभी डाक्यूमेंट्स सही तरीके से एक ही बार में कंस्यूमर कोर्ट (consumer court) या कंस्यूमर फोरम (consumer forum) में जमा करवा दिया तो आप न्याय जल्दी मिल सकता है | लेकिन आम लोग अपना केस खुद ही लड़ना चाहते और समय पर सही डाक्यूमेंट्स नहीं जमा करते है जिसके कारण उनको न्याय मिलने में देरी होती है और बार बार एक नई तरीक सुनवाई के लिए मिलती है | जिससे केस काफी दिनों तक लम्बा खींचता है | 

3. आम लोग जो बिना वकील की सलाह लेके केस दर्ज (File a Case) करवाते है उनको सबसे बड़ी समस्या यही आती है कि वो अपने लिखित बयान (Written Statement) में यही लिखते है कि हमने जो चीज खरीदी थी बस उसके बदले में वो चीज मिल जाये | वो केस का आधार लिखा भूल जाते है कि किस आधार पर उन्होंने ने केस दर्ज किया है | जिसकी वजह से दूसरी पार्टी को जीतने का मौका मिल जाता है | 

4. कोई भी केस कोर्ट (court) में दर्ज करवाते वक़्त किस आधार (Legal Grounds) पर आपने केस दर्ज करवाया है यह बताना बहुत जरूरी होता है | जो आम लोग कानूनी भाषा (legal language) की जानकारी न होने के आधार (legal grounds) नहीं बता पाते |  

5. जो उत्पाद (Product) आपने ख़रीदा है और वो अगर ख़राब निकले तो उसकी वजह से आपको कितनी मानसिक परेशानी (mental agony) का सामना करना पड़ा ये बताना जरूरी होता है | 

6. ख़राब उत्पाद (Product) की वजह से आपको जो मानसिक और शारीरिक परेशानी (mental agony) हुई है उसके लिए आपको कितना मुआवजा चाहिए ये कोर्ट (Court) और फोरम (Forum) को बताना जरूरी है |   

7. आपने जितना भी खर्च किया है कंस्यूमर कोर्ट में केस (case in consumer court) लगाने के लिए वो सब आपको सामने वाली पार्टी से मिल सकता है | अगर आपका केस सच है और आपके पास सब डाक्यूमेंट्स है बस आपको लिखित बयान (written statement) सही तरीके से दर्ज करवाना चाहिए और सभी आधार कोर्ट को सही तरीके से बताने चाहिए |

अगर आपको लिखित बयान या फिर किसी कंपनी को लीगल नोटिस (legal notice) भेजने में किसी भी प्रकार की सहायता चाहिए तो आप Voxya ऑनलाइन कंस्यूमर फोरम (online conaumer forum) की मदद ले सकते है | 


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Wednesday, 3 October 2018

जानिए क्या है पुलिस हिरसत में क्या है महिला के अधिकार (Female Rights in Police Custody )


पुलिस हिरासत (Police Custody) में भी महिलाओ के कुछ खास अधिकार है :

1. महिला की तलाशी केवल महिला पुलिस कर्मी ही ले सकती है | 

2. महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्य उदय के पहले हिरासत में नहीं लिया जा सकता है | 

3. अगर महिला को कभी लॉकअप में रखने की नौबत आती है तो उसके लिए अगल व्यवस्था होंगी | 

4. बिना वारंट महिला को तुरंत कारण बताना जरूरी है और उसे जमानत से सम्बंधित अधिकार के बारे में बताना जरूरी है |

5. गिरफ्तार हुई महिला के निकट सम्बन्धी को सूचित करना पुलिस की ड्यूटी है | 

6. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जजमेंट में कहां गया है कि जज के सामने महिला को पहली बार पेश किया जा रहा हो, उस जज को चाहिए कि वह महिला से पूछे कि उसे पुलिस हिरासत (Police Custody) में कोई बुरा बर्ताव तो नहीं झेलना पड़ा | 


कानून के अधिक जानकारी के लिए हमारे पोस्ट को पढ़ते रहे |

अगर आप की कोई समस्या है और अधिक जानकारी के लिए वकील से बात करे (Talk To Lawyer) |


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Monday, 1 October 2018

चंडीगढ़ उपभोक्ता फोरम ने भारती एयरटेल को 30,000 रुपये मुआवजा ग्राहक को देने का निर्देश दिया | (Chandigarh Consumer forum directs Bharti Airtel to pay Rs 30,000 compensation to customer)

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चंडीगढ़(Chandigarh): 
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम (District Consumer Dispute Redressal Forum) ने भारती एयरटेल लिमिटेड (Bharti Airtel Limited) को क्रेडिट लिमिट 7,200 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये करने के लिए और उसकी अमेरिका की यात्रा के दौरान बिना उपभोक्ता की अनुमति के अंतरराष्ट्रीय रोमिंग पैक (international roaming pack) को सक्रिय करने के लिए  30,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया | 


शिकायतकर्ता (complainant) कर्नल शिव कुमार आनंद, सेक्टर 34 चंडीगढ़ (Chandigarh) के निवासी, उम्र 74 साल ने अपनी शिकायत में कहा कि उसने एयरटेल (Airtel) के दो नंबरों पर पोस्टपेड कनेक्शन लिया हुआ था और जिसका महीने का बिल 500 से 600 के बीच में आता था | नवंबर 15, 2017 में वह अपनी पत्नी के साथ अमेरिका गया था और फरवरी 3, 2018 तक वो वहां पर रहे |

उन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने अमेरिका की अपनी यात्रा के दौरान सेवाओं के इस्तेमाल के लिए एयरटेल (Airtel) से कोई अनुरोध नहीं किया था, लेकिन उनको तीन महीने के अतिरंजित टेलीफोन बिल प्राप्त किए, जोकि इस प्रकार है, 9,216 रुपये, 10,892 रुपये  और 7,206 रुपये क्रमानुसार मिले |

उन्होने यह भी कहां कि जब वो भारत लोटे तो फरवरी 7, 2018 को उन्होंने ने एयरटेल (Airtel) को मेल भी किया बिल को सही करने के लिए लेकिन उनलोगो ने कुछ नहीं किया |

इसमें कहां गया था कि शिकायतकर्ता (complainantकी क्रेडिट लिमिट 7,200 रुपये थी और एयरटेल (Airtel) बिना उपभोक्ता की सहमति और बिना किसी अनुरोध के क्रेडिट लिमिट नहीं बढ़ा सकता या अधिक नहीं हो सकती,  लेकिन अपने दम पर टेलीकॉम कंपनी ने अपने गलत बिलों को कवर करने के लिए शिकायतकर्ता की लिमिट बढ़ा दी | उन्होंने फिर से बिल को सही करने के लिए एयरटेल (Airtel) को ईमेल भेजा, लेकिन इसके बजाय, टेलीकॉम कंपनी (telecom company) ने मोबाइल कनेक्शन मनमाने ढंग से और अवैध रूप से 11 अप्रैल, 2018 की सेवाओं को बंद कर दिया | 


उनके जवाब में एयरटेल (Airtel) के अधिकारियों ने कहां कि कुमार को नियम और उपयोग के अनुसार मूल्य या दाम बताया गया है |

यह प्रस्तुत किया गया था कि मामले में ग्राहक कॉल प्राप्त करने के द्वारा सेवाओं का उपयोग करता है, जबकि विदेशों में, अंतरराष्ट्रीय रोमिंग (International Roaming) सक्रिय हो रही बिना प्रति दिन 649 रुपये का पहले से तय पैक वसूला जाता है और सक्रिय , एक ही कॉल के माध्यम से अत्यधिक बिलिंग से बचने के लिए किया जाता है, डेटा उपयोग आदि, करने के लिए किया गया था वरना बिल बहुत ज्यादा आ जाता | 


यह कहा गया है कि शिकायतकर्ता (complainant) के उपयोग के अनुसार चार्ज किया गया है और सेवा में कोई कमी नहीं की गयी थी | यह भी कहां गया की क्रेडिट लिमिट उपभोक्ता के  पिछले रिकॉर्ड और स्थिति ध्यान में रखते हुए किया गया था अंयथा सेवाओं डिस्कनेक्ट कर दिया गया होता | 

इसमें आगे कहा गया कि विदेशी देश में कॉल प्राप्त होने पर भी रोमिंग सुविधा विदेशों  (roaming facility in overseas)में सक्रिय हो जाती है | 


उपभोक्ता फोरम (consumer forum) ने दोनों पक्षों को सुनाने के बाद पाया कि निस्संदेह क्रेडिट लिमिट को बढ़ाना अवैध अतिरंजित टेलीफोन बिलो को शिकयतकर्ता से वसूलने के लिए था | फोरम (Forum) की अगली बैठक में भी एयरटेल अधिकारी कोई भी दस्तवेज या सबूत सामने रख पाए जिससे यह साबित हो कि जब उपभोक्ता विदेश गया था तब किसी प्रकार का अंतरराष्ट्रीय पैक शुरू किया हो और क्रेडिट लिमिट को बढ़ाया गया हो | 


सेवा और अनुचित व्यापार अभ्यास में एक कमी होने के लिए अधिनियम के बारे में बताते हुए, एयरटेल ने दोनों मोबाइल नंबरों की सेवाएं बहाल करने का निर्देश दिया गया, और अधिक आये हुए बिल को ख़ारिज करते हुए नवंबर 15, 2017, से  फरवरी 3, 2018 तक के प्रत्येक माह 498 रुपये शुल्क लेने को कहां गया | उन्हें आगे के बिलों में 9216 रुपये की पहले से जमा की गई राशि को समायोजित करने को कहा गया | 

निर्णय के आखिर में, मानसिक व्यथा और प्रताड़ना के लिए 25,000 रुपये के मुआवजा देने के लिए और मुकदमेबाजी लागत के लिए 5,000 रुपये देने को कहां गया |    

Content source: TOI

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